Navigation


RSS : Articles / Comments


नेक बनो

10:46 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक पापी पर अल्लाह की ऐसी कृपा हुई कि वह पहुंचे हुए फकीरों में रहने लगा। पहुंचे हुए फकीरों की संगति से उसकी बुरी आदतें अच्छाइयों में बदल गईं। उसका मन हमेशा खुदा में ही रहने लगा। उसने कामवासना पर भी काबू पा लिया। उसकी प्रसिद्धि देखकर उसके दुश्मन उसे ताना दिया करते थे। वे कहते कि उसकी हालत अब भी ज्यों-की-त्यों है। उसकी परहेजगारी दिखावटी और बनावटी है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
     अगर कोई गुनाहगार गुनाहों से तौबा कर ले, तो मुमकिन है कि खुदा उसे माफ कर दे; लेकिन यह मुमकिन नहीं है कि वह दुश्मनों की तानेबाजी से बच जाए। जब वह लोगों के ताने सुनते-सुनते परेशान हो गया, तो अपने पीर के पास पहुंचा और उनसे अपना दु:ख कहा। उन्होंने कहा, 'तू खुदा की इस मेहरबानी का शुक्रिया कैसे अदा कर सकता है कि लोग तुझे जैसा समझते हैं, उससे तू कहीं अच्छा है? तू यह शिकायत कब तक करता रहेगा कि तेरा बुरा चाहने वाले और तुझसे जलने वाले तेरी निन्दा करते रहते हैं? लोग तुझे अच्छा कहें और तू बुरा हो, इससे तो कहीं अच्छा है कि तू नेक बन, भले ही लोग तुझे बुरा कहें।' यदि लोग मेरी प्रशंसा करते हों और मुझमें बुराइयां भरी हों, तो मुझे लोगों से डरना चाहिए। बेशक मैं अपने पड़ोसियों की आंखों से छिपा हुआ हूं, लेकिन मेरे अन्दर-बाहर की सब बातें अल्लाह तो जानता है। मैंने अपना दरवाजा आदमियों के आने-जाने के लिए बन्द कर रखा है ताकि वे मेरी बुराइयों को न फैला सकें, लेकिन दरवाजा बन्द करने से भी क्या फायदा? खुदा तो छिपी और खुली हुई सारी बातों को जानता है।   
                                                                 शेख सादी

शागिर्द ऐसे भी

10:51 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक पहलवान कुश्ती लड़ने में बहुत माहिर था। उसका एक शागिर्द भी था, जिसे वह बहुत चाहता था। उसने शागिर्द को तीन सौ उनसठ दांव-पेंच सिखा दिए थे, किन्तु एक जो बच रहा था, उसे सिखाने में वह आनाकानी करता रहा। कुछ समय बाद वह शागिर्द भी ताकत और हुनर के लिए मशहूर हो गया। धीरे-धीरे उसे इतना घमंड हो गया कि वह बादशाह के पास जाकर बोला, 'हुजूर, उस्ताद की इज्जत मैं इसलिए करता हूं, क्योंकि वह मेरे बुजुर्ग हैं और उन्होंने मुझे पाला-पोसा है। मैं ताकत में उनसे कम नहीं हूं और जहां तक हुनर का सवाल है, मैं उनके बराबर ही हूं।'
बादशाह को लड़के की यह बात बुरी लगी। उसने दोनों के बीच कुश्ती करवाने का हुक्म दे दिया। उस्ताद समझ गया कि लड़के में उससे ज्यादा ताकत है। चूंकि उसने एक दांव उस लड़के को अभी तक नहीं सिखाया था। उसी दांव से उसने लड़के का मुकाबला किया। लड़का इस दांव का काट नहीं जानता था। उस्ताद ने दोनों हाथों से उसे अपने सिर के ऊपर उठा लिया और जमीन पर दे पटका। लोगों ने खुशी से शोर मचाया। बादशाह ने प्रसन्न होकर उस्ताद को इनाम दिया। उस लड़के को उसने फटकारा, 'तूने अपने उस्ताद से ही मुकाबले का दावा किया और कुछ कर भी न सका।'
लड़के ने उत्तर दिया, 'ऐ दुनिया के मालिक! उस्ताद ने कुश्ती का एक दांव मुझसे छिपा रखा था। आज उसी दांव से इन्होंने मुझे हरा दिया।' उस्ताद ने कहा, मैंने इसी दिन के लिए यह दांव इससे बचाकर रखा था। अक्लमंदों ने कहा है- दोस्त को इतनी ताकत न दे कि यदि वह चाहे तो तुझ से दुश्मनी कर सके।                           
- शेख सादी

आह से तबाही

10:22 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


एक धनवान व्यक्ति बड़ा जालिम था। उसके बारे में बताया जाता है कि वह गरीब मजदूरों से कम दाम में लकडि़यां खरीदकर उन्हें भारी मुनाफे के साथ मालदार लोगों को बेच दिया करता था। एक फकीर ने उस जालिम के पास जाकर कहा,' तू सांप तो नहीं कि जिसको देखता है, उसे डस लेता है? या तू उल्लू है कि जहां बैठता है, उस जगह को उजाड़ देता है?' अगर तेरा जोर हम पर चल गया तो क्या उस खुदा पर भी चल जाएगा, जो भाग्य की बात जानता है? जमीन वालों पर जुल्म न कर, नहीं तो लोगों की बद-दुआएं आसमान तक जा पहुंचेगी।      धनवान व्यक्ति को फकीर ये बातें बुरी लगीं। उसने मुंह फेर लिया और फकीर की नसीहत पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह उसी तरह से गरीबों पर जुल्म करता रहा और परेशान करता रहा। एक बार रात में उसके रसोईघर में रखी हुई लकडि़यों में आग लग गई। उसके पास जो भी सामान था, वह सबका-सब इस आग में जल गया। वह इतना गरीब हो गया कि नर्म बिस्तरों की जगह अब गर्म राख में बैठने की नौबत आ पहुंची।
एक बार वही फकीर उसके घर के पास से गुजरा। उसने सुना कि धनवान व्यक्ति अपने दोस्तों से कह रहा था, 'मैं यह नहीं जान सका कि मेरे घर में यह आग कहां से लगी?'
फकीर बोल पड़ा, 'गरीबों के दिल के धुएं से।'
अक्लमंदों ने कहा है कि जख्मी दिलों के धुएं से डरता रह। अन्दर का जख्म कभी-न-कभी जाहिर जरूर होता है। जहां तक हो सके, किसी का दिल न दुखा। तू नहीं जानता कि एक आह सारे जहान को तबाह कर देती है।
                                                                                                                                            शेख सादी

अहसान

10:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


फारस के एक शहर के बादशाह का वजीर कुलीन और  अच्छे स्वभाव का था। एक बार बादशाह  उससे नाराज हो गया। उसने वजीर को जेल भिजवा दिया। सिपाही वजीर से सहानुभूति रखते थे। उन्होंने जेल में उसके साथ अच्छा व्यवहार किया। बादशाह ने जो आरोप लगाए थे, उनमें से कुछ से तो वह छूट गया, किन्तु कुछ में अपने निर्दोष होने का प्रमाण नहीं दे सका। इसलिए उसे जेल में ही रहना पड़ा।
   इसी बीच पड़ोस के किसी दूसरे बादशाह ने चोरी-छिपे उसके पास पत्र भेजा, जिसमें लिखा था, 'तेरे बादशाह ने तेरा महत्व नहीं समझा और तेरा अपमान किया है। यदि तू हमसे मिल जाए तो हम तुझे कैद से छुड़वा देंगे। इस हुकूमत के बड़े हाकिम जवाब का इन्तजार कर रहे हैं।' वजीर ने उसी पत्र के पीछे एक छोटा-सा उत्तर लिखकर भेज दिया। संयोग से बादशाह को इस पत्र की जानकारी हो गई। बादशाह के आदेश पर पत्र ले जाने वाला पकड़ा गया। पत्र पढ़ा गया। उसमें लिखा था, 'आप जो मेहरबानी मुझ पर करना चाहते हैं, उसे मैं कबूल नहीं कर सकता। यदि बादशाह ने किसी कारण मुझे थोड़ी तकलीफ भी पहुंचाई है, तो मैं उसके पुराने अहसानों को नहीं भूल पाऊंगा, मैं उसके साथ बेवफाई नहीं कर सकता।' बादशाह को जब यह बात मालूम हुई तो उसने खुश होकर वजीर को इनाम दिया और क्षमा मांगते हुए कहा कि मुझसे गलती हुई जो तुझ बेकसूर को सजा दी।
अक्लमंदों ने कहा है, 'जिस मेहरबान ने हमेशा तुझ पर मेहरबानी की है, यदि वह तमाम उम्र में तुझ पर एक जुल्म भी कर दे तो उसे माफ कर देना चाहिए।'  
शेख सादी

इंसाफ

11:30 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

   एक बादशाह बीमार पड़ गया। यूनानी हकीमों ने एकमत से कहा कि इस रोग का कोई इलाज नहीं। केवल एक चीज से लाभ हो सकता है। वह है किसी ऐसे आदमी का जिगर, जिसमें हकीमों की बताई हुई कुछ विशेषताएं हों। संयोग से एक गांव के जमींदार के लड़के के जिगर में वही विशेषताएं मिल गईं। लड़के के मां-बाप को बुलाया गया। वे बहुत-सा धन पाकर उसके बदले में अपना बेटा देने को राजी हो गए। काजी ने भी फतवा दे दिया कि बादशाह की जान बचाने के लिए एक आदमी का खून कर डालना उचित है। जल्लाद उस लड़के का प्राण लेने के लिए आ गया। 
  लड़के ने आकाश की तरफ देखा और मुस्कुराया। बादशाह ने पूछा, 'इस समय हंसने की क्या बात है?' लड़का बोला, 'बच्चा अपने मां-बाप पर नाज करता है, क्योंकि वे प्यार से उसे पालते-पोसते हैं। यदि उसके साथ अन्याय होता है, तो मां-बाप काजी के पास शिकायत लेकर जाते हैं और बादशाह से न्याय की मांग करते हैं। यहां हालत यह है कि मेरे मां-बाप ने धन के लोभ में आकर मेरे प्राण बेच दिए हैं, काजी साहब ने बादशाह को खुश करने के लिए फतवा दे दिया कि मेरा मारा जाना ही उचित है और बादशाह सलामत मेरी मृत्यु में ही अपना भला देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में अल्लाह के अलावा और कौन है, जो मेरी रक्षा कर सके? ऐ बादशाह! मैं तेरे जुल्म की फरियाद और किससे करूं? तेरे जुल्म का इंसाफ मैं तुझी से चाहता हूं।' यह सुन बादशाह का दिलभर आया। वह बोला, 'इस निरपराध लड़के का खून बहाने से अच्छा है, मैं मर ही जाऊं।' बादशाह ने उसे गले से लगा लिया और आजाद कर दिया।    
शेख सादी

अक्ल की बात

11:25 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

खलीफा हारून-अल-रशीद ने जब मिस्र का मुल्क जीतकर उस पर कब्जा कर लिया, तो उसे अपने एक मामूली से गुलाम को सौंप दिया। वह वहां के हारे हुए बादशाह फिरऔन को ही उसका मुल्क लौटा सकता था, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। कारण यह था कि फिरऔन को इतना अहंकार हो गया था कि वह ईश्वर होने का दावा करने लग गया था। जिस गुलाम को यह मुल्क दे दिया गया था, वह एक हब्शी था और उसका नाम था खजीब।
लोग कहते हैं कि इस गुलाम के पास अक्ल बिल्कुल नहीं थी। लोग उसकी बातों पर हंसते थे। एक बार कुछ किसान उसके पास फरियाद लेकर आए कि उन्होंने नील नदी के किनारे खेती की, लेकिन वर्षा और बाढ़ के कारण उनकी फसल बर्बाद हो गई।
हब्शी बोला, 'तुम्हें ऊन की खेती करनी चाहिए थी। वह कभी तबाह न होती।'
एक बुजुर्ग ने यह बात सुनकर कहा, 'दरअसल अक्ल और रोजी का कोई ताल्लुक नहीं। यदि रोजी अक्ल के बढ़ने के साथ ही बढ़ती, तो बेवकूफों से ज्यादा और कौन दुखी होता? लेकिन रोजी पहुंचाने वाला बेवकूफों को इस तरह रोजी पहुंचाता है कि उसे देखकर अक्लमन्द भी हैरत में पड़ जाते हैं। नसीबा और दौलत अक्ल और हुनर से नहीं मिलते। ये चीजें तो अल्लाह के करम से ही मिलती हैं।'
कीमिया बनाने वाला बेचारा मेहनत करते-करते मर गया और बेवकूफ को वीराने में खजाना मिल गया। जिनमें कोई अक्ल और तमीज नहीं थी, उन्हें तो ऊंचा दर्जा मिल गया; लेकिन अक्लमंद नीचा और जलील रहा।     - शेख सादी