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बेईमानी से भय

11:20 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

मेरा एक दोस्त मुझसे शिकायत करने लगा, 'जमाना बड़ा खराब है। मेरी आमदनी थोड़ी है और बाल-बच्चे ज्यादा। कहां तक सहा जाए? भूखों मरा नहीं जाता। कई बार मन में आता है कि परदेस चला जाऊं। सुख-दुख में जैसे भी हो, वहां गुजर कर लूं। किसी को मेरे अच्छे या बुरे हाल का पता भी नहीं चलेगा।' न जाने कितने लोग भूखे सो जाते हैं और किसी को खबर भी नहीं होती। न जाने कितने मृत्यु-शय्या पर पड़े होते हैं और कोई उन्हें रोने वाला भी नहीं होता। 'परन्तु मुझे भय है कि पीठ पीछे मेरे शत्रु खुश हो-होकर मेरी हंसी उड़ाएंगे, मुझे ताने देंगे और कहेंगे कि 'वह आदमी कितना बेमुरव्वत है! खुद तो चला गया और बेचारे बाल-बच्चों को यहां मुसीबत उठाने के लिए छोड़ गया।' उस बेशर्म को देखो! वह कभी खुशहाल न होगा, जो अपने खुद के आराम के लिए बीवी-बच्चों को मुसीबत में छोड़ गया।
'आपको मालूम है कि मुझे थोड़ा-बहुत हिसाब-किताब का काम आता है। यदि आपकी सहायता से मुझे कोई काम मिल जाए, तो मैं आपका आभारी रहूंगा।' मैंने कहा, 'मेरे भाई, बादशाह की नौकरी में दो बातें हैं- रोटी की उम्मीद और जान का खतरा, अक्लमन्दों की राय है कि रोटी की उम्मीद में जान का खतरा नहीं मोल लेना चाहिए।'
फकीर के घर आकर कोई यह तकाजा नहीं करता कि जमीन या बाग का कर (टैक्स) दे। उसने कहा-'जनाब ने जो कुछ कहा, वह मेरी समझ में नहीं आया। बादशाह की नौकरी से वही डरता है, जो बेईमान होता है। जो कायर है उसी का हाथ कांपता है।' जिसका हिसाब साफ है,उसे हिसाब की जांच का क्या डर?     शेख सादी

फकीर

11:33 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


मैंने एक आदमी को देखा, जो सूरत तो फकीरों की-सी बनाए हुए था, लेकिन फकीरों जैसे गुण उसमें नहीं थे। महफिल में बैठा हुआ वह दूसरों की बुराइयां कर रहा था और उसने शिकायतों का पूरा दफ्तर खोल रखा था, धनवान लोगों की वह खासतौर पर बुराई कर रहा था।
वह कह रहा था, 'फकीर की ताकत का बाजू बंधा हुआ है, तो अमीरों की हिम्मत की टांग टूटी हुई है।'
जो दानी है, उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं, उनमें रहम नहीं है। मुझे उसकी बातें नागवार लगीं। मैंने कहा, 'ऐ दोस्त! धनवान ही गरीबों की आमदनी है। वही फकीरों की पूंजी है। जियारत करने वालों का मकसद भी वे ही पूरा करवाते हैं। वे मुसाफिरों को पनाह देते हैं। '
अरब वाला कहता है, 'मैं अल्लाह से दुआ मांगता हूं कि वह मुझे गरीबी से बचाए और ऐसे पड़ोसी से बचाए, जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता।'
हदीस (मुहम्मद साहब के प्रवचन) में भी आया है कि 'गरीबी दोनों दुनियाओं में मुंह की कालिख बनती है।'
वह फकीर मुझसे बोला, 'तूने वह तो सुन लिया, जो अरब ने कहा। क्या तूने यह नहीं सुना कि रसूल-अल्लाह ने फरमाया है कि, 'मैं फकीरों पर फख्र करता हूं?'
मैंने कहा, 'चुप रह! रसूल-अल्लाह का इशारा उन फकीरों की तरफ है, जो खुदा की मर्जी में ही राजी रहते हैं और जो खुदा की भेजी हुई हर चीज को खुशी से कुबूल करते हैं, न कि वे लोग जो गूदड़ी पहन लेते हैं और खैरात में मिले टुकड़े बेचते फिरते हैं।'    -शेख सादी

तजुर्बा

3:10 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक साल मैं बल्ख से वामिया जा रहा था। रास्ते में डाकुओं का खतरा था। हमारे आगे एक नौजवान चल रहा था। वह हथियारों से लैस था। दुनिया का कोई पहलवान उसकी कमर को जमीन पर नहीं लगा सकता था। मगर उसने न जमाना देख रखा था, न बहादुरों के नक्कारे की कड़क उसके कानों में पड़ी थी और न सवारों की तलवारों की चमक उसने देखी थी। न कभी वह दुश्मन के हाथ कैदी बना था। मैं और वह जवान आगे-पीछे चल रहे थे। जो पुरानी दीवार सामने आती, उसे वह बाजुओं के जोर से गिरा देता और जो पेड़ रास्ते में आता, उसे वह अपने पंजे की ताकत से उखाड़ देता और घमंड के साथ कहता, 'हाथी कहां है? आकर मेरे बाजुओं की ताकत को देखे! शेर कहां है? वह मर्दों के पंजों का जोर तो देखे!'
हम इसी तरह चले जा रहे थे कि एक पत्थर के पीछे से दो डाकुओं ने सिर उभारा और हमसे लड़ने को तैयार हो गए। उनमें से एक के हाथ में एक लकड़ी थी और दूसरे के हाथ में एक मोंगरी। मैंने जवान से कहा, 'देखता क्या है? दुश्मन आ गए! जो जवांमर्दी और ताकत तुझमें हो, दिखा।' मैंने देखा कि जवान के हाथ से तीर-कमान गिर पड़ा और उसकी हड्डियों में कंपकंपी पैदा हो गई। फिर मेरे लिए सिवा इसके कोई चारा न रहा कि मैं जान बचाकर भाग जाऊं।
बड़े कामों के लिए तजुर्बेकार को भेज, जो खूंखार शेर को भी अपनी अक्ल से कमन्द में फांस लाए। जवान कितना भी ताकतवर क्यों न हो, दुश्मन से लड़ते वक्त डर के मारे उसके सब जोड़ हिल जाते हैं। तजुर्बेकार आदमी लड़ाई के हुनर को जानता है।     - शेख सादी