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मेहनत

4:11 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक सौदागर व्यापार करने के मकसद से घर से निकला। उसने एक अपाहिज लोमड़ी देखी, जिसके हाथ-पैर नहीं थे, फिर भी तंदरुस्त। सौदागर ने सोचा, यह तो चलने-फिरने से भी मजबूर है, फिर यह खाती कहां से है?
अचानक उसने देखा कि एक शेर, एक जंगली गाय का शिकार करके उसी तरफ आ रहा है। वह डर के मारे एक पेड़ पर चढ़ गया। शेर लोमड़ी के करीब बैठकर ही अपना शिकार खाने लगा और बचा-खुचा शिकार वहीं छोड़कर चला गया। लोमड़ी आहिस्ता-आहिस्ता खिसकते हुए बचे हुए शिकार की तरफ बढ़ी और बचे खुचे को खाकर अपना पेट भर लिया। सौदागर ने यह माजरा देखकर सोचा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर जब इस अपाहिज लोमड़ी को भी बैठे-बिठाए खाना-खुराक देता है तो फिर मुझे घर से निकलकर दूर-दराज इस खाना-खुराक के इंतजाम के  लिए भटकने की क्या जरूरत है? मैं भी घर बैठता हूं। वह वापस चला आया।
कई दिन गुजर गए लेकिन आमदनी की कोई सूरत नजर नहीं आई। एक दिन घबराकर बोला-ऐ मेरे पालक अपाहिज लोमड़ी को तो खाना-खुराक दे और मुझे कुछ नहीं।
आखिर ऐसा क्यों? उसे एक आवाज सुनाई दी, 'ऐ नादान हमने तुझको दो चीजें दिखाई थीं। एक मोहताज लोमड़ी जो दूसरों के बचे-खुचे पर नजर रखती है और एक शेर जो मेहनत करके खुद शिकार करता है। तूने मोहताज लोमड़ी बनने की तो कोशिश की, लेकिन बहादुर शेर बनने की कोशिश न की। शेर क्यों नहीं बनते ताकि खुद भी खाओ और बेसहारों को भी खिलाओ।' यह सुनकर सौदागर फिर सौदागरी को चल निकला।

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