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एक छिपकली की हमदर्दी

12:57 am, Posted by दास्तानें, No Comment




एक जापानी अपने मकान की मरम्मत के लिए उसकी दीवार को खोल रहा था। ज्यादातर जापानी घरों में लकड़ी की दीवारो के बीच जगह होती है।
जब वह लकड़ी की इस दीवार को उधेड़ रहा तो उसने देखा कि वहां दीवार में एक छिपकली फंसी हुई थी। छिपकली के एक पैर में कील ठुकी हुई थी। उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने इस मामले में उत्सुकता दिखाई और गौर से उस छिपकली के पैर में ठुकी कील को देखा।
अरे यह क्या! यह तो वही कील है जो दस साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी।
यह क्या !!!!
क्या यह छिपकली पिछले दस सालों से इसी हालत से दो चार है?
दीवार के अंधेरे हिस्से में बिना हिले-डुले पिछले दस सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग इसको गवारा नहीं कर रहा।
उसे हैरत हुई। यह छिपकली पिछले दस सालों से आखिर जिंदा कैसे है!!!  बिना एक कदम हिले-डुले जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!
उसने अपना काम रोक दिया और उस छिपकली को गौर से देखने लगा।
आखिर यह अब तक कैसे रह पाई और क्या और किस तरह की खुराक इसे अब तक मिल पाई।
इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने कहां से वहां आई जिसके मुंह में खुराक थी।
अरे!!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल गया। यह दूसरी छिपकली पिछले दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।
जरा गौर कीजिए वह दूसरी छिपकली बिना थके और अपने साथी की उम्मीद छोड़े बिना लगातार दस साल से उसे खिलाती रही।

आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप अपने जीवनसाथी के लिए ऐसी कोशिश कर सकते हैं?
सोचिए क्या तुम अपनी मां के लिए ऐसा कर सकते हो जो तुम्हें नौ माह तक परेशानी पर परेशानी उठाते हुए अपनी कोख में लिए-लिए फिरती है?
और कम से कम अपने पिता के लिए, अपने भाई-बहिनों के लिए या फिर अपने दोस्त के लिए?
गौर और फिक्र कीजिए अगर एक छोटा सा जीव ऐसा कर सकता है तो वह जीव क्यों नहीं जिसको ईश्वर ने सबसे ज्यादा अक्लमंद बनाया है?

मेहनत

4:11 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक सौदागर व्यापार करने के मकसद से घर से निकला। उसने एक अपाहिज लोमड़ी देखी, जिसके हाथ-पैर नहीं थे, फिर भी तंदरुस्त। सौदागर ने सोचा, यह तो चलने-फिरने से भी मजबूर है, फिर यह खाती कहां से है?
अचानक उसने देखा कि एक शेर, एक जंगली गाय का शिकार करके उसी तरफ आ रहा है। वह डर के मारे एक पेड़ पर चढ़ गया। शेर लोमड़ी के करीब बैठकर ही अपना शिकार खाने लगा और बचा-खुचा शिकार वहीं छोड़कर चला गया। लोमड़ी आहिस्ता-आहिस्ता खिसकते हुए बचे हुए शिकार की तरफ बढ़ी और बचे खुचे को खाकर अपना पेट भर लिया। सौदागर ने यह माजरा देखकर सोचा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर जब इस अपाहिज लोमड़ी को भी बैठे-बिठाए खाना-खुराक देता है तो फिर मुझे घर से निकलकर दूर-दराज इस खाना-खुराक के इंतजाम के  लिए भटकने की क्या जरूरत है? मैं भी घर बैठता हूं। वह वापस चला आया।
कई दिन गुजर गए लेकिन आमदनी की कोई सूरत नजर नहीं आई। एक दिन घबराकर बोला-ऐ मेरे पालक अपाहिज लोमड़ी को तो खाना-खुराक दे और मुझे कुछ नहीं।
आखिर ऐसा क्यों? उसे एक आवाज सुनाई दी, 'ऐ नादान हमने तुझको दो चीजें दिखाई थीं। एक मोहताज लोमड़ी जो दूसरों के बचे-खुचे पर नजर रखती है और एक शेर जो मेहनत करके खुद शिकार करता है। तूने मोहताज लोमड़ी बनने की तो कोशिश की, लेकिन बहादुर शेर बनने की कोशिश न की। शेर क्यों नहीं बनते ताकि खुद भी खाओ और बेसहारों को भी खिलाओ।' यह सुनकर सौदागर फिर सौदागरी को चल निकला।

चुग़लख़ोर

11:36 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

“गुरुजी, मेरा सहपाठी मुझसे जलता है. जब मैं ‘हदीस’ के कठिन शब्दों के अर्थों को बताता हूँ तो वह जल-भुन जाता है.” शेख सादी ने अपने शिक्षक से कहा.
गुरूजी बहुत नाराज हुए – “अरे नासमझ, तू अपने सहपाठी पर उंगली उठाता है, पर अपनी ओर नहीं देखता. मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुझे किसने बताया कि लोगों के पीठ पीछे निन्दा करना अच्छा है? अगर उसने कमीने पन से अपने लिए नरक का रास्ता चुना है तो चुग़लख़ोरी की राह से तू भी तो वहीं पहुँचेगा.”
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चुग़ली
एक आदमी एक दिन किसी समझदार आदमी के सामने चुगली कर रहा था. उसने कहा “तुम मेरे सामने दूसरों की बुराई कर रहे हो. यह अच्छी बात नहीं है. यह ठीक है कि जिसकी बुराई तुम मुझे बता रहे हो, उसके बारे में मेरे मन में विचार खराब हो जाएंगे, परंतु तुम्हारे बारे में भी मेरे विचार खराब हो जाएंगे. मैं सोचने लग गया हूँ कि तुम भी अच्छे आदमी नहीं हो.”  शेख सादी

बुद्धिमानी

11:33 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह ने एक विदेशी क़ैदी को मृत्युदंड दे दिया. क़ैदी को यह बहुत नागवार गुजरा और यह समझ कर कि उसे तो अब मरना ही है, बादशाह को अपनी भाषा में खूब गालियां देने लगा.
बादशाह ने वज़ीर से पूछा – “यह क्या बक रहा है?”

वज़ीर ने कहा – “हुजूर यह कह रहा है कि जो आदमी क्रोध को अपने वश में रखता है और जो दूसरों के गुनाहों को माफ कर देता है, अल्लाह उस पर मेहरबान होता है.”

बादशाह को कुछ अक्ल आई, और उसने क़ैदी को छोड़ देने का हुक्म दिया.
एक दूसरा भी वज़ीर वहाँ बैठा था. उसने बीच में टोका – “नहीं हुजूर, इसने आपसे झूठ कहा है. जहाँपनाह, क़ैदी को छोड़ें नहीं, दरअसल यह क़ैदी आपको तमाम गालियां दे रहा था.”
बादशाह ने उत्तर दिया - “तुम्हारी सच्ची बात से इसकी झूठी बात मुझे अधिक पसन्द आई. इसके झूठ के पीछे सद् विचार हैं. जबकि तुम्हारी सच्चाई किसी की बुराई पर टिकी है.”   शेख सादी

सर्वोत्तम इबादत

11:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


एक बादशाह अत्यंत अत्याचारी था. एक बार उसने एक फ़क़ीर से पूछा - “मेरे लिए सबसे अच्छी इबादत क्या होगी?”
फ़क़ीर बोला - “तुम जितना अधिक सो सको, सोया करो. तुम्हारे लिए यही सबसे बड़ी इबादत है.”
बादशाह को अचरज हुआ. बोला - “यह कैसी इबादत है? भला सोते रहने में कैसी इबादत? फ़क़ीर यह कैसी आराधना तुम मुझे बता रहे हो?”
फ़क़ीर मुस्कराते हुए बोला - “मैं फिर से कहता हूँ कि तुम्हारे लिए यही सर्वोत्तम इबादत है. जितनी देर तक तुम सोते रहोगे, उतनी देर तक लोग तुम्हारे अत्याचार से बचे रहेंगे” शेख सादी

सच्ची कविता

11:30 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक कवि थे. जिसके सामने होते, उसकी प्रशंसा में कविता कर उसे सुनाते. बदले में उन्हें इनाम में जो कुछ मिलता, उससे गुजर-बसर आराम से चल रहा था.

एक बार वह डाकुओं के डेरे पर जा पहुँचे. डाकुओं के सरदार की प्रशंसा में कवि कविता सुनाने लगे.

डाकुओं के सरदार ने कहा - “इस मूर्ख को पता नहीं है कि हम डाकू हैं – खून-खराबा, लूटपाट हमारा पेशा है – और यह हमारी झूठी तारीफ़ों के पुल बाँध रहा है. इसे नंगा कर डेरे के बाहर फेंक दो.”

नंगे कवि को देख कुत्ते भौंकने लगे. कुत्तों को मार-भगाने के लिए कवि ने पास ही का पत्थर उठाना चाहा, परंतु वह जमीन में धंसा हुआ था. कवि गुस्से में चिल्लाया “कैसे हरामजादे हैं यहाँ के लोग. कुत्तों को तो खुला छोड़ देते हैं, और पत्थरों को जमीन पर गाड़ कर रखते हैं.”

सरदार उसे देख रहा था. उसने कवि की गुस्से में भरी ये बातें सुनीं तो वह हँस पड़ा. कवि को वापस बुलवाया और कहा - “तुम तो बड़े बुद्धिमान मालूम होते हो. चलो, तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी. जो चाहते हो मांगो.”

कवि बोला - “मुझे मेरे कपड़े वापस कर दीजिए, और मुझे आराम से जाने दीजिए बस”

सरदार बोला - “बस, अरे भाई कुछ और मांगो.”

कवि बोला - “कामना किसी भले मानस से ही की जाती है. आप डाकू हैं – इंसानियत के दुश्मन – लुटेरे...” भय और गुस्से से उसकी आवाज़ कांप रही थी.

सरदार ठठाकर हँसा. बोला “कवि महोदय, यह जो तुमने अभी कहा वही तुम्हारी सच्ची कविता है. सच्ची कविता वही है जिसमें सच्ची बात कही जाए”  शेख सादी

सच्चा फ़क़ीर

11:28 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बार एक बादशाह ने नौकर को मोहरों की थैली देते हुए कहा - “ले, जा इन मोहरों को फ़क़ीरों में बांट आ.”

नौकर सारा दिन मोहरें बांटने के लिए तमाम जगह घूमता रहा और देर रात को वापस आया. बादशाह ने उसके हाथ में मोहरों से वैसी ही भरी हुई थैली देखकर पूछा - “क्यों मोहरें नहीं बांटीं क्या? इन्हें वापस क्यों ले आए?”

“हुजूर, मैंने फ़क़ीरों को बहुत ढूंढा, परंतु मुझे कोई फ़क़ीर मिले ही नहीं जिन्हें मोहरें दी जा सकें.” नौकर ने उत्तर दिया.

बादशाह का पारा गरम हो गया – वह गरजे - “क्या बकवास करता है – फ़क़ीरों का भी कोई टोटा है – सैकड़ों फ़क़ीर राह चलते ही मिल जाते हैं.”

“आप सही फ़रमा रहे हैं जहाँपनाह – पर मैं सच कहता हूँ, मैंने सारा दिन छान मारा – जो फ़क़ीर थे, उन्होंने ये मोहरें लेने से इनकार कर दिया और जो लेना चाहते थे वे तो किसी हाल में फ़क़ीर नहीं थे. अब बताएं मैं क्या करता?” नौकर ने सफाई दी.

बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ. सच्चे फ़क़ीर धन से दूर रहते हैं.    शेख सादी

चाहत

11:26 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक धनी बूढ़ा था. उसने शादी नहीं की थी. लोग उससे कहते – “अब तो बुढ़ापे में सहारे के लिए शादी कर लो मियाँ”
“किसी बुढ़िया से शादी करने को जी नहीं करता” बूढ़ा कहा करता.

“तो फिर किसी जवान से ही कर लो” लोग कहते - “औरतों की कोई कमी है क्या?”

बूढ़े का उत्तर होता - “जब मैं बूढ़ा किसी बुढ़िया से शादी करने की नहीं सोच सकता तो मैं कैसे सोच सकता हूँ कि कोई जवान मुझ बूढ़े से राज़ी खुशी, बिना लालच शादी करेगी” शेख सादी

बेईमानी से भय

11:20 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

मेरा एक दोस्त मुझसे शिकायत करने लगा, 'जमाना बड़ा खराब है। मेरी आमदनी थोड़ी है और बाल-बच्चे ज्यादा। कहां तक सहा जाए? भूखों मरा नहीं जाता। कई बार मन में आता है कि परदेस चला जाऊं। सुख-दुख में जैसे भी हो, वहां गुजर कर लूं। किसी को मेरे अच्छे या बुरे हाल का पता भी नहीं चलेगा।' न जाने कितने लोग भूखे सो जाते हैं और किसी को खबर भी नहीं होती। न जाने कितने मृत्यु-शय्या पर पड़े होते हैं और कोई उन्हें रोने वाला भी नहीं होता। 'परन्तु मुझे भय है कि पीठ पीछे मेरे शत्रु खुश हो-होकर मेरी हंसी उड़ाएंगे, मुझे ताने देंगे और कहेंगे कि 'वह आदमी कितना बेमुरव्वत है! खुद तो चला गया और बेचारे बाल-बच्चों को यहां मुसीबत उठाने के लिए छोड़ गया।' उस बेशर्म को देखो! वह कभी खुशहाल न होगा, जो अपने खुद के आराम के लिए बीवी-बच्चों को मुसीबत में छोड़ गया।
'आपको मालूम है कि मुझे थोड़ा-बहुत हिसाब-किताब का काम आता है। यदि आपकी सहायता से मुझे कोई काम मिल जाए, तो मैं आपका आभारी रहूंगा।' मैंने कहा, 'मेरे भाई, बादशाह की नौकरी में दो बातें हैं- रोटी की उम्मीद और जान का खतरा, अक्लमन्दों की राय है कि रोटी की उम्मीद में जान का खतरा नहीं मोल लेना चाहिए।'
फकीर के घर आकर कोई यह तकाजा नहीं करता कि जमीन या बाग का कर (टैक्स) दे। उसने कहा-'जनाब ने जो कुछ कहा, वह मेरी समझ में नहीं आया। बादशाह की नौकरी से वही डरता है, जो बेईमान होता है। जो कायर है उसी का हाथ कांपता है।' जिसका हिसाब साफ है,उसे हिसाब की जांच का क्या डर?     शेख सादी

फकीर

11:33 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


मैंने एक आदमी को देखा, जो सूरत तो फकीरों की-सी बनाए हुए था, लेकिन फकीरों जैसे गुण उसमें नहीं थे। महफिल में बैठा हुआ वह दूसरों की बुराइयां कर रहा था और उसने शिकायतों का पूरा दफ्तर खोल रखा था, धनवान लोगों की वह खासतौर पर बुराई कर रहा था।
वह कह रहा था, 'फकीर की ताकत का बाजू बंधा हुआ है, तो अमीरों की हिम्मत की टांग टूटी हुई है।'
जो दानी है, उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं, उनमें रहम नहीं है। मुझे उसकी बातें नागवार लगीं। मैंने कहा, 'ऐ दोस्त! धनवान ही गरीबों की आमदनी है। वही फकीरों की पूंजी है। जियारत करने वालों का मकसद भी वे ही पूरा करवाते हैं। वे मुसाफिरों को पनाह देते हैं। '
अरब वाला कहता है, 'मैं अल्लाह से दुआ मांगता हूं कि वह मुझे गरीबी से बचाए और ऐसे पड़ोसी से बचाए, जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता।'
हदीस (मुहम्मद साहब के प्रवचन) में भी आया है कि 'गरीबी दोनों दुनियाओं में मुंह की कालिख बनती है।'
वह फकीर मुझसे बोला, 'तूने वह तो सुन लिया, जो अरब ने कहा। क्या तूने यह नहीं सुना कि रसूल-अल्लाह ने फरमाया है कि, 'मैं फकीरों पर फख्र करता हूं?'
मैंने कहा, 'चुप रह! रसूल-अल्लाह का इशारा उन फकीरों की तरफ है, जो खुदा की मर्जी में ही राजी रहते हैं और जो खुदा की भेजी हुई हर चीज को खुशी से कुबूल करते हैं, न कि वे लोग जो गूदड़ी पहन लेते हैं और खैरात में मिले टुकड़े बेचते फिरते हैं।'    -शेख सादी

तजुर्बा

3:10 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक साल मैं बल्ख से वामिया जा रहा था। रास्ते में डाकुओं का खतरा था। हमारे आगे एक नौजवान चल रहा था। वह हथियारों से लैस था। दुनिया का कोई पहलवान उसकी कमर को जमीन पर नहीं लगा सकता था। मगर उसने न जमाना देख रखा था, न बहादुरों के नक्कारे की कड़क उसके कानों में पड़ी थी और न सवारों की तलवारों की चमक उसने देखी थी। न कभी वह दुश्मन के हाथ कैदी बना था। मैं और वह जवान आगे-पीछे चल रहे थे। जो पुरानी दीवार सामने आती, उसे वह बाजुओं के जोर से गिरा देता और जो पेड़ रास्ते में आता, उसे वह अपने पंजे की ताकत से उखाड़ देता और घमंड के साथ कहता, 'हाथी कहां है? आकर मेरे बाजुओं की ताकत को देखे! शेर कहां है? वह मर्दों के पंजों का जोर तो देखे!'
हम इसी तरह चले जा रहे थे कि एक पत्थर के पीछे से दो डाकुओं ने सिर उभारा और हमसे लड़ने को तैयार हो गए। उनमें से एक के हाथ में एक लकड़ी थी और दूसरे के हाथ में एक मोंगरी। मैंने जवान से कहा, 'देखता क्या है? दुश्मन आ गए! जो जवांमर्दी और ताकत तुझमें हो, दिखा।' मैंने देखा कि जवान के हाथ से तीर-कमान गिर पड़ा और उसकी हड्डियों में कंपकंपी पैदा हो गई। फिर मेरे लिए सिवा इसके कोई चारा न रहा कि मैं जान बचाकर भाग जाऊं।
बड़े कामों के लिए तजुर्बेकार को भेज, जो खूंखार शेर को भी अपनी अक्ल से कमन्द में फांस लाए। जवान कितना भी ताकतवर क्यों न हो, दुश्मन से लड़ते वक्त डर के मारे उसके सब जोड़ हिल जाते हैं। तजुर्बेकार आदमी लड़ाई के हुनर को जानता है।     - शेख सादी

खर्च कम करें

11:09 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक शहजादे को विरासत में बेहद दौलत मिल गई। वह ऐयाशी में डूब गया। कोई गुनाह ऐसा नहीं था, जो उसने नहीं किया। एक बार मैंने उसे समझाया,'साहबजादे! आमदनी बहते हुए पानी की तरह है और खर्च पनचक्की की तरह। इसलिए ज्यादा खर्च उसी को मुनासिब है जिसकी आमदनी लगातार होती रहती हो।' मल्लाह एक गीत गाया करते हैं, जिसका मतलब है कि यदि पहाड़ों पर बारिश न हो, तो दजला नदी एक ही साल में सूख जाए। क्योंकि जब यह दौलत खत्म हो जाएगी, तो तू मुसीबत उठाएगा और शर्मिन्दा होगा।'
शहजादे ने मेरी नसीहत नहीं सुनी। कहने लगा, 'मौजूदा आराम को आने वाली परेशानियों से गंदला करना अक्लमन्दों का काम नहीं है। दिल को रौशन करने वाले दोस्त! कल का गम आज नहीं खाना चाहिए। मेरी उदारता की चर्चा सबकी जबान पर है।' मैंने देखा कि वह मेरी नसीहत मानने को हर्गिज तैयार नहीं है। मेरी गर्म सांस उसके ठंडे लोहे पर असर नहीं कर रही थी। इसलिए मैंने और कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा। मैं अक्लमंद लोगों के कहे पर अमल करने लगा कि जो तेरा फर्ज हो उसे दूसरों तक पहुंचा दे। फिर भी अगर वह न माने तो तुझ पर कोई इल्जाम नहीं। खुलासा यह कि जिसका मुझे डर था, वही हुआ। वह इतना गरीब हो गया कि दाने-दाने को मोहताज था। उसे फटेहाल देखकर मेरा दिल भर आया। मैंने दिल ही दिल में कहा-तुच्छ व्यक्ति अपनी मस्ती में डूबा हुआ मुसीबत के दिन की फिक्र नहीं करता। बहार के मौसम में पेड़ फल लुटाते हैं, तभी जाड़ों में उन्हें पतझड़ का सामना करना पड़ता है।     -शेख सादी

अच्छी शिक्षा

5:30 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बहुत बड़ा विद्वान बादशाह के बेटे को पढ़ाता था। वह उसे बेहद डांटता और मारता रहता था। एक दिन मजबूर होकर लड़के ने पिता के पास जाकर शिकायत की और अपना जख्मी जिस्म भी दिखाया। बादशाह का दिल भर आया। उसने उस्ताद को बुलवाया और कहा, 'तू मेरे बच्चे को जितना झिड़कता और मारता है, इतना आम लोगों के बच्चों को नहीं, इसकी वजह क्या है?'
उस्ताद बोला, 'वजह यह है कि यों तो सोच-समझकर बोलना और अच्छे काम करना सब लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन बादशाहों के लिए खासतौर से जरूरी है। जो बात उनकी जुबान से निकलेगी या जो काम उनके हाथ से होगा, वह सारी दुनिया में मशहूर हो जाएगा, जबकि आम लोगों की बात और काम का इतना असर नहीं होता।'
यदि किसी फकीर में सौ ऐब हैं, तो उसके साथी उसका एक ऐब भी न लेंगे, लेकिन बादशाह से एक नाजायज हरकत हो जाए, तो उसकी शोहरत मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो जाएगी। 'इसलिए अन्य बच्चों के मुकाबले में बादशाह के बेटे के चरित्र को संवारने की उस्ताद को ज्यादा कोशिश करनी चाहिए।' जिस बच्चे को तू बचपन से अदब नहीं सिखाएगा, वह जब बड़ा होगा, तो उसमें कोई गुण नहीं होगा। जब तक लकड़ी गीली रहती है, उसे कैसे ही मोड़ लो। जब वह सूख जाती है, तो आग में रखकर ही उसे सीधा किया जा सकता है। जो लड़का सिखाने वाले का जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसे जमाने का जुल्म बर्दाश्त करना पड़ता है। बादशाह को उस काबिल उस्ताद की बात पसंद आई। उसने खुश होकर इनाम दिया।     -शेख सादी

उस्ताद का जुल्म

10:55 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

पश्चिम के मुल्क में मैंने एक मदरसे में ऐसे उस्ताद को देखा जो बेहद चिड़चिड़ा, बच्चों को सताने वाला और कमअक्ल था। मुसलमान उसे देखकर बहुत दुखी होते। उसके सामने न किसी की हंसने की हिम्मत होती थी और न बात करने की। कभी वह किसी के गाल पर तमाचा मार देता और कभी किसी की पिंडली को शिकंजे में कस देता। जब लोगों को उसकी ज्यादतियों का पता चला तो उन्होंने उसे मार-मारकर वहां से निकाल दिया।
उस मदरसे में एक नेक आदमी पढ़ाने के लिए रख दिया गया। यह आदमी परहेजगार था। कभी किसी से ऐसी बात नहीं कहता था, जिससे उसे तकलीफ पहुंचती। बच्चों के दिल में पहले उस्ताद का जो डर था, वह निकल गया। नए उस्ताद को उन्होंने फरिश्ते की तरह नेक पाया। नतीजा यह हुआ कि हर लड़का शैतान बन गया। उस्ताद की शराफत का फायदा उठाकर उन्होंने पिछला पढ़ा-लिखा भी सब भुला दिया।
पढ़ाने वाला उस्ताद जब बच्चों पर सख्ती करना बन्द कर देता है, तो बच्चे बाजार में जाकर मदारी बन जाते हैं।
दो हफ्ते बाद मैं उस मदरसे की तरफ से गुजरा। मैंने देखा कि अब वे लोग पहले वाले उस्ताद को मनाकर वापस ले आए थे। मैंने लाहौल पढ़ा और लोगों से पूछा कि उस शैतान को फिर से फरिश्तों का उस्ताद क्यों बना दिया गया?
एक मसखरे और तजुर्बेकार बूढ़े ने मुझे जवाब दिया, 'एक बादशाह ने अपने बेटे को मकतब में बैठाया और उसकी बगल में चांदी की तख्ती दे दी, उसके हाथों सोने के पानी से उस तख्ती पर लिखवाया गया- 'उस्ताद का जुल्म बाप की मुहब्बत से बेहतर है।'    -शेख सादी

उदारता

11:51 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

मैंने एक गुम्बद पर घास से बंधे हुए कुछ ताजे फूलों के गुलदस्ते रखे हुए देखे। मैंने घास से कहा, 'तू फूलों के साथ रहने योग्य कहां थी!'
वह रो पड़ी और बोली, 'चुप रह! शराफत का अर्थ यह नहीं है कि दोस्ती को भुला दिया जाए। माना कि मुझ में सुन्दरता, रंग और खुशबू नहीं है, किन्तु क्या मैं भी उसी बाग की घास नहीं हूं, जिसमें ये फूल खिलते है?'
इसी प्रकार मैं उस खुदा के दरबार का गुलाम हूं, जो बड़ा रहीम है। मैं उसी की नेमतों का पला हुआ हूं। मुझे उस मालिक से सदा मेहरबानी की उम्मीद है। मेरे पास कोई पूंजी नहीं है और मैंने उसकी सेवा का पुण्य भी नहीं कमाया है, किन्तु वह मेरी जरूरतों को समझता है और यह भी जानता है कि मेरा उसके सिवा और कोई सहारा नहीं है। नियम है कि जब गुलाम बूढ़ा हो जाता है, तो मालिक उसे आजाद कर देता है। ऐ दुनिया बनाने-संवारने वाले सर्वशक्तिमान खुदा! तू महान है। तू अपने बूढ़े गुलाम 'सादी' को बख्श दे। ऐ सादी! तू खुदा की मर्जी पर भरोसा कर। तेरे लिए यही काबा है। तू तो खुदा का गुलाम है। उसी के रास्ते पर चल। जो इस दरवाजे से मुंह मोड़ेगा, वह अभागा है। उसे और कोई दरवाजा नहीं मिलेगा। एक आलम से लोगों ने पूछा, 'उदारता और पराक्रम में कौन-सा गुण श्रेष्ठ है?' उसने उत्तर दिया, 'जिसके पास उदारता है, उसे पराक्रम की आवश्यकता नहीं।'
बहराम गौर की कब्र पर लिखा हुआ है कि सखावत यानी उदारता का हाथ जोर के बाजू से बेहतर है। हातिमताई तो न रहा, लेकिन उसका नेक नाम उसकी दरियादिली के कारण अमर रहेगा।    - शेख सादी