मैंने एक आदमी को देखा, जो सूरत तो फकीरों की-सी बनाए हुए था, लेकिन फकीरों जैसे गुण उसमें नहीं थे। महफिल में बैठा हुआ वह दूसरों की बुराइयां कर रहा था और उसने शिकायतों का पूरा दफ्तर खोल रखा था, धनवान लोगों की वह खासतौर पर बुराई कर रहा था।
वह कह रहा था, 'फकीर की ताकत का बाजू बंधा हुआ है, तो अमीरों की हिम्मत की टांग टूटी हुई है।'
जो दानी है, उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं, उनमें रहम नहीं है। मुझे उसकी बातें नागवार लगीं। मैंने कहा, 'ऐ दोस्त! धनवान ही गरीबों की आमदनी है। वही फकीरों की पूंजी है। जियारत करने वालों का मकसद भी वे ही पूरा करवाते हैं। वे मुसाफिरों को पनाह देते हैं। '
अरब वाला कहता है, 'मैं अल्लाह से दुआ मांगता हूं कि वह मुझे गरीबी से बचाए और ऐसे पड़ोसी से बचाए, जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता।'
हदीस (मुहम्मद साहब के प्रवचन) में भी आया है कि 'गरीबी दोनों दुनियाओं में मुंह की कालिख बनती है।'
वह फकीर मुझसे बोला, 'तूने वह तो सुन लिया, जो अरब ने कहा। क्या तूने यह नहीं सुना कि रसूल-अल्लाह ने फरमाया है कि, 'मैं फकीरों पर फख्र करता हूं?'
मैंने कहा, 'चुप रह! रसूल-अल्लाह का इशारा उन फकीरों की तरफ है, जो खुदा की मर्जी में ही राजी रहते हैं और जो खुदा की भेजी हुई हर चीज को खुशी से कुबूल करते हैं, न कि वे लोग जो गूदड़ी पहन लेते हैं और खैरात में मिले टुकड़े बेचते फिरते हैं।' -शेख सादी