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एक छिपकली की हमदर्दी

12:57 am, Posted by दास्तानें, No Comment




एक जापानी अपने मकान की मरम्मत के लिए उसकी दीवार को खोल रहा था। ज्यादातर जापानी घरों में लकड़ी की दीवारो के बीच जगह होती है।
जब वह लकड़ी की इस दीवार को उधेड़ रहा तो उसने देखा कि वहां दीवार में एक छिपकली फंसी हुई थी। छिपकली के एक पैर में कील ठुकी हुई थी। उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने इस मामले में उत्सुकता दिखाई और गौर से उस छिपकली के पैर में ठुकी कील को देखा।
अरे यह क्या! यह तो वही कील है जो दस साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी।
यह क्या !!!!
क्या यह छिपकली पिछले दस सालों से इसी हालत से दो चार है?
दीवार के अंधेरे हिस्से में बिना हिले-डुले पिछले दस सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग इसको गवारा नहीं कर रहा।
उसे हैरत हुई। यह छिपकली पिछले दस सालों से आखिर जिंदा कैसे है!!!  बिना एक कदम हिले-डुले जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!
उसने अपना काम रोक दिया और उस छिपकली को गौर से देखने लगा।
आखिर यह अब तक कैसे रह पाई और क्या और किस तरह की खुराक इसे अब तक मिल पाई।
इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने कहां से वहां आई जिसके मुंह में खुराक थी।
अरे!!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल गया। यह दूसरी छिपकली पिछले दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।
जरा गौर कीजिए वह दूसरी छिपकली बिना थके और अपने साथी की उम्मीद छोड़े बिना लगातार दस साल से उसे खिलाती रही।

आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप अपने जीवनसाथी के लिए ऐसी कोशिश कर सकते हैं?
सोचिए क्या तुम अपनी मां के लिए ऐसा कर सकते हो जो तुम्हें नौ माह तक परेशानी पर परेशानी उठाते हुए अपनी कोख में लिए-लिए फिरती है?
और कम से कम अपने पिता के लिए, अपने भाई-बहिनों के लिए या फिर अपने दोस्त के लिए?
गौर और फिक्र कीजिए अगर एक छोटा सा जीव ऐसा कर सकता है तो वह जीव क्यों नहीं जिसको ईश्वर ने सबसे ज्यादा अक्लमंद बनाया है?

मेहनत

4:11 am, Posted by दास्तानें, No Comment

एक सौदागर व्यापार करने के मकसद से घर से निकला। उसने एक अपाहिज लोमड़ी देखी, जिसके हाथ-पैर नहीं थे, फिर भी तंदरुस्त। सौदागर ने सोचा, यह तो चलने-फिरने से भी मजबूर है, फिर यह खाती कहां से है?
अचानक उसने देखा कि एक शेर, एक जंगली गाय का शिकार करके उसी तरफ आ रहा है। वह डर के मारे एक पेड़ पर चढ़ गया। शेर लोमड़ी के करीब बैठकर ही अपना शिकार खाने लगा और बचा-खुचा शिकार वहीं छोड़कर चला गया। लोमड़ी आहिस्ता-आहिस्ता खिसकते हुए बचे हुए शिकार की तरफ बढ़ी और बचे खुचे को खाकर अपना पेट भर लिया। सौदागर ने यह माजरा देखकर सोचा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर जब इस अपाहिज लोमड़ी को भी बैठे-बिठाए खाना-खुराक देता है तो फिर मुझे घर से निकलकर दूर-दराज इस खाना-खुराक के इंतजाम के  लिए भटकने की क्या जरूरत है? मैं भी घर बैठता हूं। वह वापस चला आया।
कई दिन गुजर गए लेकिन आमदनी की कोई सूरत नजर नहीं आई। एक दिन घबराकर बोला-ऐ मेरे पालक अपाहिज लोमड़ी को तो खाना-खुराक दे और मुझे कुछ नहीं।
आखिर ऐसा क्यों? उसे एक आवाज सुनाई दी, 'ऐ नादान हमने तुझको दो चीजें दिखाई थीं। एक मोहताज लोमड़ी जो दूसरों के बचे-खुचे पर नजर रखती है और एक शेर जो मेहनत करके खुद शिकार करता है। तूने मोहताज लोमड़ी बनने की तो कोशिश की, लेकिन बहादुर शेर बनने की कोशिश न की। शेर क्यों नहीं बनते ताकि खुद भी खाओ और बेसहारों को भी खिलाओ।' यह सुनकर सौदागर फिर सौदागरी को चल निकला।

चुग़लख़ोर

11:36 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

“गुरुजी, मेरा सहपाठी मुझसे जलता है. जब मैं ‘हदीस’ के कठिन शब्दों के अर्थों को बताता हूँ तो वह जल-भुन जाता है.” शेख सादी ने अपने शिक्षक से कहा.
गुरूजी बहुत नाराज हुए – “अरे नासमझ, तू अपने सहपाठी पर उंगली उठाता है, पर अपनी ओर नहीं देखता. मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुझे किसने बताया कि लोगों के पीठ पीछे निन्दा करना अच्छा है? अगर उसने कमीने पन से अपने लिए नरक का रास्ता चुना है तो चुग़लख़ोरी की राह से तू भी तो वहीं पहुँचेगा.”
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चुग़ली
एक आदमी एक दिन किसी समझदार आदमी के सामने चुगली कर रहा था. उसने कहा “तुम मेरे सामने दूसरों की बुराई कर रहे हो. यह अच्छी बात नहीं है. यह ठीक है कि जिसकी बुराई तुम मुझे बता रहे हो, उसके बारे में मेरे मन में विचार खराब हो जाएंगे, परंतु तुम्हारे बारे में भी मेरे विचार खराब हो जाएंगे. मैं सोचने लग गया हूँ कि तुम भी अच्छे आदमी नहीं हो.”  शेख सादी

बुद्धिमानी

11:33 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह ने एक विदेशी क़ैदी को मृत्युदंड दे दिया. क़ैदी को यह बहुत नागवार गुजरा और यह समझ कर कि उसे तो अब मरना ही है, बादशाह को अपनी भाषा में खूब गालियां देने लगा.
बादशाह ने वज़ीर से पूछा – “यह क्या बक रहा है?”

वज़ीर ने कहा – “हुजूर यह कह रहा है कि जो आदमी क्रोध को अपने वश में रखता है और जो दूसरों के गुनाहों को माफ कर देता है, अल्लाह उस पर मेहरबान होता है.”

बादशाह को कुछ अक्ल आई, और उसने क़ैदी को छोड़ देने का हुक्म दिया.
एक दूसरा भी वज़ीर वहाँ बैठा था. उसने बीच में टोका – “नहीं हुजूर, इसने आपसे झूठ कहा है. जहाँपनाह, क़ैदी को छोड़ें नहीं, दरअसल यह क़ैदी आपको तमाम गालियां दे रहा था.”
बादशाह ने उत्तर दिया - “तुम्हारी सच्ची बात से इसकी झूठी बात मुझे अधिक पसन्द आई. इसके झूठ के पीछे सद् विचार हैं. जबकि तुम्हारी सच्चाई किसी की बुराई पर टिकी है.”   शेख सादी

सर्वोत्तम इबादत

11:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


एक बादशाह अत्यंत अत्याचारी था. एक बार उसने एक फ़क़ीर से पूछा - “मेरे लिए सबसे अच्छी इबादत क्या होगी?”
फ़क़ीर बोला - “तुम जितना अधिक सो सको, सोया करो. तुम्हारे लिए यही सबसे बड़ी इबादत है.”
बादशाह को अचरज हुआ. बोला - “यह कैसी इबादत है? भला सोते रहने में कैसी इबादत? फ़क़ीर यह कैसी आराधना तुम मुझे बता रहे हो?”
फ़क़ीर मुस्कराते हुए बोला - “मैं फिर से कहता हूँ कि तुम्हारे लिए यही सर्वोत्तम इबादत है. जितनी देर तक तुम सोते रहोगे, उतनी देर तक लोग तुम्हारे अत्याचार से बचे रहेंगे” शेख सादी

सच्ची कविता

11:30 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक कवि थे. जिसके सामने होते, उसकी प्रशंसा में कविता कर उसे सुनाते. बदले में उन्हें इनाम में जो कुछ मिलता, उससे गुजर-बसर आराम से चल रहा था.

एक बार वह डाकुओं के डेरे पर जा पहुँचे. डाकुओं के सरदार की प्रशंसा में कवि कविता सुनाने लगे.

डाकुओं के सरदार ने कहा - “इस मूर्ख को पता नहीं है कि हम डाकू हैं – खून-खराबा, लूटपाट हमारा पेशा है – और यह हमारी झूठी तारीफ़ों के पुल बाँध रहा है. इसे नंगा कर डेरे के बाहर फेंक दो.”

नंगे कवि को देख कुत्ते भौंकने लगे. कुत्तों को मार-भगाने के लिए कवि ने पास ही का पत्थर उठाना चाहा, परंतु वह जमीन में धंसा हुआ था. कवि गुस्से में चिल्लाया “कैसे हरामजादे हैं यहाँ के लोग. कुत्तों को तो खुला छोड़ देते हैं, और पत्थरों को जमीन पर गाड़ कर रखते हैं.”

सरदार उसे देख रहा था. उसने कवि की गुस्से में भरी ये बातें सुनीं तो वह हँस पड़ा. कवि को वापस बुलवाया और कहा - “तुम तो बड़े बुद्धिमान मालूम होते हो. चलो, तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी. जो चाहते हो मांगो.”

कवि बोला - “मुझे मेरे कपड़े वापस कर दीजिए, और मुझे आराम से जाने दीजिए बस”

सरदार बोला - “बस, अरे भाई कुछ और मांगो.”

कवि बोला - “कामना किसी भले मानस से ही की जाती है. आप डाकू हैं – इंसानियत के दुश्मन – लुटेरे...” भय और गुस्से से उसकी आवाज़ कांप रही थी.

सरदार ठठाकर हँसा. बोला “कवि महोदय, यह जो तुमने अभी कहा वही तुम्हारी सच्ची कविता है. सच्ची कविता वही है जिसमें सच्ची बात कही जाए”  शेख सादी

सच्चा फ़क़ीर

11:28 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बार एक बादशाह ने नौकर को मोहरों की थैली देते हुए कहा - “ले, जा इन मोहरों को फ़क़ीरों में बांट आ.”

नौकर सारा दिन मोहरें बांटने के लिए तमाम जगह घूमता रहा और देर रात को वापस आया. बादशाह ने उसके हाथ में मोहरों से वैसी ही भरी हुई थैली देखकर पूछा - “क्यों मोहरें नहीं बांटीं क्या? इन्हें वापस क्यों ले आए?”

“हुजूर, मैंने फ़क़ीरों को बहुत ढूंढा, परंतु मुझे कोई फ़क़ीर मिले ही नहीं जिन्हें मोहरें दी जा सकें.” नौकर ने उत्तर दिया.

बादशाह का पारा गरम हो गया – वह गरजे - “क्या बकवास करता है – फ़क़ीरों का भी कोई टोटा है – सैकड़ों फ़क़ीर राह चलते ही मिल जाते हैं.”

“आप सही फ़रमा रहे हैं जहाँपनाह – पर मैं सच कहता हूँ, मैंने सारा दिन छान मारा – जो फ़क़ीर थे, उन्होंने ये मोहरें लेने से इनकार कर दिया और जो लेना चाहते थे वे तो किसी हाल में फ़क़ीर नहीं थे. अब बताएं मैं क्या करता?” नौकर ने सफाई दी.

बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ. सच्चे फ़क़ीर धन से दूर रहते हैं.    शेख सादी

चाहत

11:26 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक धनी बूढ़ा था. उसने शादी नहीं की थी. लोग उससे कहते – “अब तो बुढ़ापे में सहारे के लिए शादी कर लो मियाँ”
“किसी बुढ़िया से शादी करने को जी नहीं करता” बूढ़ा कहा करता.

“तो फिर किसी जवान से ही कर लो” लोग कहते - “औरतों की कोई कमी है क्या?”

बूढ़े का उत्तर होता - “जब मैं बूढ़ा किसी बुढ़िया से शादी करने की नहीं सोच सकता तो मैं कैसे सोच सकता हूँ कि कोई जवान मुझ बूढ़े से राज़ी खुशी, बिना लालच शादी करेगी” शेख सादी