एक बादशाह ने एक विदेशी क़ैदी को मृत्युदंड दे दिया. क़ैदी को यह बहुत नागवार गुजरा और यह समझ कर कि उसे तो अब मरना ही है, बादशाह को अपनी भाषा में खूब गालियां देने लगा.
बादशाह ने वज़ीर से पूछा – “यह क्या बक रहा है?”
वज़ीर ने कहा – “हुजूर यह कह रहा है कि जो आदमी क्रोध को अपने वश में रखता है और जो दूसरों के गुनाहों को माफ कर देता है, अल्लाह उस पर मेहरबान होता है.”
बादशाह को कुछ अक्ल आई, और उसने क़ैदी को छोड़ देने का हुक्म दिया.
एक दूसरा भी वज़ीर वहाँ बैठा था. उसने बीच में टोका – “नहीं हुजूर, इसने आपसे झूठ कहा है. जहाँपनाह, क़ैदी को छोड़ें नहीं, दरअसल यह क़ैदी आपको तमाम गालियां दे रहा था.”
बादशाह ने उत्तर दिया - “तुम्हारी सच्ची बात से इसकी झूठी बात मुझे अधिक पसन्द आई. इसके झूठ के पीछे सद् विचार हैं. जबकि तुम्हारी सच्चाई किसी की बुराई पर टिकी है.” शेख सादी
बादशाह ने वज़ीर से पूछा – “यह क्या बक रहा है?”
वज़ीर ने कहा – “हुजूर यह कह रहा है कि जो आदमी क्रोध को अपने वश में रखता है और जो दूसरों के गुनाहों को माफ कर देता है, अल्लाह उस पर मेहरबान होता है.”
बादशाह को कुछ अक्ल आई, और उसने क़ैदी को छोड़ देने का हुक्म दिया.
एक दूसरा भी वज़ीर वहाँ बैठा था. उसने बीच में टोका – “नहीं हुजूर, इसने आपसे झूठ कहा है. जहाँपनाह, क़ैदी को छोड़ें नहीं, दरअसल यह क़ैदी आपको तमाम गालियां दे रहा था.”
बादशाह ने उत्तर दिया - “तुम्हारी सच्ची बात से इसकी झूठी बात मुझे अधिक पसन्द आई. इसके झूठ के पीछे सद् विचार हैं. जबकि तुम्हारी सच्चाई किसी की बुराई पर टिकी है.” शेख सादी