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अक्ल की बात

11:25 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

खलीफा हारून-अल-रशीद ने जब मिस्र का मुल्क जीतकर उस पर कब्जा कर लिया, तो उसे अपने एक मामूली से गुलाम को सौंप दिया। वह वहां के हारे हुए बादशाह फिरऔन को ही उसका मुल्क लौटा सकता था, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। कारण यह था कि फिरऔन को इतना अहंकार हो गया था कि वह ईश्वर होने का दावा करने लग गया था। जिस गुलाम को यह मुल्क दे दिया गया था, वह एक हब्शी था और उसका नाम था खजीब।
लोग कहते हैं कि इस गुलाम के पास अक्ल बिल्कुल नहीं थी। लोग उसकी बातों पर हंसते थे। एक बार कुछ किसान उसके पास फरियाद लेकर आए कि उन्होंने नील नदी के किनारे खेती की, लेकिन वर्षा और बाढ़ के कारण उनकी फसल बर्बाद हो गई।
हब्शी बोला, 'तुम्हें ऊन की खेती करनी चाहिए थी। वह कभी तबाह न होती।'
एक बुजुर्ग ने यह बात सुनकर कहा, 'दरअसल अक्ल और रोजी का कोई ताल्लुक नहीं। यदि रोजी अक्ल के बढ़ने के साथ ही बढ़ती, तो बेवकूफों से ज्यादा और कौन दुखी होता? लेकिन रोजी पहुंचाने वाला बेवकूफों को इस तरह रोजी पहुंचाता है कि उसे देखकर अक्लमन्द भी हैरत में पड़ जाते हैं। नसीबा और दौलत अक्ल और हुनर से नहीं मिलते। ये चीजें तो अल्लाह के करम से ही मिलती हैं।'
कीमिया बनाने वाला बेचारा मेहनत करते-करते मर गया और बेवकूफ को वीराने में खजाना मिल गया। जिनमें कोई अक्ल और तमीज नहीं थी, उन्हें तो ऊंचा दर्जा मिल गया; लेकिन अक्लमंद नीचा और जलील रहा।     - शेख सादी

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