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नेक बनो

10:46 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक पापी पर अल्लाह की ऐसी कृपा हुई कि वह पहुंचे हुए फकीरों में रहने लगा। पहुंचे हुए फकीरों की संगति से उसकी बुरी आदतें अच्छाइयों में बदल गईं। उसका मन हमेशा खुदा में ही रहने लगा। उसने कामवासना पर भी काबू पा लिया। उसकी प्रसिद्धि देखकर उसके दुश्मन उसे ताना दिया करते थे। वे कहते कि उसकी हालत अब भी ज्यों-की-त्यों है। उसकी परहेजगारी दिखावटी और बनावटी है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
     अगर कोई गुनाहगार गुनाहों से तौबा कर ले, तो मुमकिन है कि खुदा उसे माफ कर दे; लेकिन यह मुमकिन नहीं है कि वह दुश्मनों की तानेबाजी से बच जाए। जब वह लोगों के ताने सुनते-सुनते परेशान हो गया, तो अपने पीर के पास पहुंचा और उनसे अपना दु:ख कहा। उन्होंने कहा, 'तू खुदा की इस मेहरबानी का शुक्रिया कैसे अदा कर सकता है कि लोग तुझे जैसा समझते हैं, उससे तू कहीं अच्छा है? तू यह शिकायत कब तक करता रहेगा कि तेरा बुरा चाहने वाले और तुझसे जलने वाले तेरी निन्दा करते रहते हैं? लोग तुझे अच्छा कहें और तू बुरा हो, इससे तो कहीं अच्छा है कि तू नेक बन, भले ही लोग तुझे बुरा कहें।' यदि लोग मेरी प्रशंसा करते हों और मुझमें बुराइयां भरी हों, तो मुझे लोगों से डरना चाहिए। बेशक मैं अपने पड़ोसियों की आंखों से छिपा हुआ हूं, लेकिन मेरे अन्दर-बाहर की सब बातें अल्लाह तो जानता है। मैंने अपना दरवाजा आदमियों के आने-जाने के लिए बन्द कर रखा है ताकि वे मेरी बुराइयों को न फैला सकें, लेकिन दरवाजा बन्द करने से भी क्या फायदा? खुदा तो छिपी और खुली हुई सारी बातों को जानता है।   
                                                                 शेख सादी

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