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शागिर्द ऐसे भी

10:51 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक पहलवान कुश्ती लड़ने में बहुत माहिर था। उसका एक शागिर्द भी था, जिसे वह बहुत चाहता था। उसने शागिर्द को तीन सौ उनसठ दांव-पेंच सिखा दिए थे, किन्तु एक जो बच रहा था, उसे सिखाने में वह आनाकानी करता रहा। कुछ समय बाद वह शागिर्द भी ताकत और हुनर के लिए मशहूर हो गया। धीरे-धीरे उसे इतना घमंड हो गया कि वह बादशाह के पास जाकर बोला, 'हुजूर, उस्ताद की इज्जत मैं इसलिए करता हूं, क्योंकि वह मेरे बुजुर्ग हैं और उन्होंने मुझे पाला-पोसा है। मैं ताकत में उनसे कम नहीं हूं और जहां तक हुनर का सवाल है, मैं उनके बराबर ही हूं।'
बादशाह को लड़के की यह बात बुरी लगी। उसने दोनों के बीच कुश्ती करवाने का हुक्म दे दिया। उस्ताद समझ गया कि लड़के में उससे ज्यादा ताकत है। चूंकि उसने एक दांव उस लड़के को अभी तक नहीं सिखाया था। उसी दांव से उसने लड़के का मुकाबला किया। लड़का इस दांव का काट नहीं जानता था। उस्ताद ने दोनों हाथों से उसे अपने सिर के ऊपर उठा लिया और जमीन पर दे पटका। लोगों ने खुशी से शोर मचाया। बादशाह ने प्रसन्न होकर उस्ताद को इनाम दिया। उस लड़के को उसने फटकारा, 'तूने अपने उस्ताद से ही मुकाबले का दावा किया और कुछ कर भी न सका।'
लड़के ने उत्तर दिया, 'ऐ दुनिया के मालिक! उस्ताद ने कुश्ती का एक दांव मुझसे छिपा रखा था। आज उसी दांव से इन्होंने मुझे हरा दिया।' उस्ताद ने कहा, मैंने इसी दिन के लिए यह दांव इससे बचाकर रखा था। अक्लमंदों ने कहा है- दोस्त को इतनी ताकत न दे कि यदि वह चाहे तो तुझ से दुश्मनी कर सके।                           
- शेख सादी

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