फारस के एक शहर के बादशाह का वजीर कुलीन और अच्छे स्वभाव का था। एक बार बादशाह उससे नाराज हो गया। उसने वजीर को जेल भिजवा दिया। सिपाही वजीर से सहानुभूति रखते थे। उन्होंने जेल में उसके साथ अच्छा व्यवहार किया। बादशाह ने जो आरोप लगाए थे, उनमें से कुछ से तो वह छूट गया, किन्तु कुछ में अपने निर्दोष होने का प्रमाण नहीं दे सका। इसलिए उसे जेल में ही रहना पड़ा।
इसी बीच पड़ोस के किसी दूसरे बादशाह ने चोरी-छिपे उसके पास पत्र भेजा, जिसमें लिखा था, 'तेरे बादशाह ने तेरा महत्व नहीं समझा और तेरा अपमान किया है। यदि तू हमसे मिल जाए तो हम तुझे कैद से छुड़वा देंगे। इस हुकूमत के बड़े हाकिम जवाब का इन्तजार कर रहे हैं।' वजीर ने उसी पत्र के पीछे एक छोटा-सा उत्तर लिखकर भेज दिया। संयोग से बादशाह को इस पत्र की जानकारी हो गई। बादशाह के आदेश पर पत्र ले जाने वाला पकड़ा गया। पत्र पढ़ा गया। उसमें लिखा था, 'आप जो मेहरबानी मुझ पर करना चाहते हैं, उसे मैं कबूल नहीं कर सकता। यदि बादशाह ने किसी कारण मुझे थोड़ी तकलीफ भी पहुंचाई है, तो मैं उसके पुराने अहसानों को नहीं भूल पाऊंगा, मैं उसके साथ बेवफाई नहीं कर सकता।' बादशाह को जब यह बात मालूम हुई तो उसने खुश होकर वजीर को इनाम दिया और क्षमा मांगते हुए कहा कि मुझसे गलती हुई जो तुझ बेकसूर को सजा दी।
अक्लमंदों ने कहा है, 'जिस मेहरबान ने हमेशा तुझ पर मेहरबानी की है, यदि वह तमाम उम्र में तुझ पर एक जुल्म भी कर दे तो उसे माफ कर देना चाहिए।'
शेख सादी