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इंसाफ

11:30 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

   एक बादशाह बीमार पड़ गया। यूनानी हकीमों ने एकमत से कहा कि इस रोग का कोई इलाज नहीं। केवल एक चीज से लाभ हो सकता है। वह है किसी ऐसे आदमी का जिगर, जिसमें हकीमों की बताई हुई कुछ विशेषताएं हों। संयोग से एक गांव के जमींदार के लड़के के जिगर में वही विशेषताएं मिल गईं। लड़के के मां-बाप को बुलाया गया। वे बहुत-सा धन पाकर उसके बदले में अपना बेटा देने को राजी हो गए। काजी ने भी फतवा दे दिया कि बादशाह की जान बचाने के लिए एक आदमी का खून कर डालना उचित है। जल्लाद उस लड़के का प्राण लेने के लिए आ गया। 
  लड़के ने आकाश की तरफ देखा और मुस्कुराया। बादशाह ने पूछा, 'इस समय हंसने की क्या बात है?' लड़का बोला, 'बच्चा अपने मां-बाप पर नाज करता है, क्योंकि वे प्यार से उसे पालते-पोसते हैं। यदि उसके साथ अन्याय होता है, तो मां-बाप काजी के पास शिकायत लेकर जाते हैं और बादशाह से न्याय की मांग करते हैं। यहां हालत यह है कि मेरे मां-बाप ने धन के लोभ में आकर मेरे प्राण बेच दिए हैं, काजी साहब ने बादशाह को खुश करने के लिए फतवा दे दिया कि मेरा मारा जाना ही उचित है और बादशाह सलामत मेरी मृत्यु में ही अपना भला देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में अल्लाह के अलावा और कौन है, जो मेरी रक्षा कर सके? ऐ बादशाह! मैं तेरे जुल्म की फरियाद और किससे करूं? तेरे जुल्म का इंसाफ मैं तुझी से चाहता हूं।' यह सुन बादशाह का दिलभर आया। वह बोला, 'इस निरपराध लड़के का खून बहाने से अच्छा है, मैं मर ही जाऊं।' बादशाह ने उसे गले से लगा लिया और आजाद कर दिया।    
शेख सादी

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