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आह से तबाही

10:22 pm, Posted by दास्तानें, No Comment


एक धनवान व्यक्ति बड़ा जालिम था। उसके बारे में बताया जाता है कि वह गरीब मजदूरों से कम दाम में लकडि़यां खरीदकर उन्हें भारी मुनाफे के साथ मालदार लोगों को बेच दिया करता था। एक फकीर ने उस जालिम के पास जाकर कहा,' तू सांप तो नहीं कि जिसको देखता है, उसे डस लेता है? या तू उल्लू है कि जहां बैठता है, उस जगह को उजाड़ देता है?' अगर तेरा जोर हम पर चल गया तो क्या उस खुदा पर भी चल जाएगा, जो भाग्य की बात जानता है? जमीन वालों पर जुल्म न कर, नहीं तो लोगों की बद-दुआएं आसमान तक जा पहुंचेगी।      धनवान व्यक्ति को फकीर ये बातें बुरी लगीं। उसने मुंह फेर लिया और फकीर की नसीहत पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह उसी तरह से गरीबों पर जुल्म करता रहा और परेशान करता रहा। एक बार रात में उसके रसोईघर में रखी हुई लकडि़यों में आग लग गई। उसके पास जो भी सामान था, वह सबका-सब इस आग में जल गया। वह इतना गरीब हो गया कि नर्म बिस्तरों की जगह अब गर्म राख में बैठने की नौबत आ पहुंची।
एक बार वही फकीर उसके घर के पास से गुजरा। उसने सुना कि धनवान व्यक्ति अपने दोस्तों से कह रहा था, 'मैं यह नहीं जान सका कि मेरे घर में यह आग कहां से लगी?'
फकीर बोल पड़ा, 'गरीबों के दिल के धुएं से।'
अक्लमंदों ने कहा है कि जख्मी दिलों के धुएं से डरता रह। अन्दर का जख्म कभी-न-कभी जाहिर जरूर होता है। जहां तक हो सके, किसी का दिल न दुखा। तू नहीं जानता कि एक आह सारे जहान को तबाह कर देती है।
                                                                                                                                            शेख सादी

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