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संतोष कीजिए

11:25 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह मरते दम तक किसी को अपना वारिस नहीं बना सका। अन्तिम समय में उसने घोषणा की कि उसकी मृत्यु के अगले दिन सुबह जो व्यक्ति सबसे पहले उस शहर के दरवाजे से प्रवेश करे, उसी को बादशाह बना दिया जाए। संयोग से वह व्यक्ति एक फकीर था, जिसने फटे चीथड़ों पर पैबन्द लगाकर शरीर ढका था। वजीरों और जमीरों ने उसी के सिर पर ताज रख दिया। एक दिन उसका एक पुराना साथी उधर आ निकला और उससे बोला, 'अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि तेरे नसीब ने जोर मारा और तुझे बादशाहत मिल गई। तेरे पैरों के कांटे निकल गए और तुझे उनके स्थान पर फूल मिले। किसी ने ठीक कहा है कि मुसीबत के बाद सुख के दिन आते हैं।' कली कभी फूल बन जाती है और कभी मुरझाकर गिर जाती है। पेड़ कभी नंगा हो जाता है और कभी पत्तियों से लद जाता है।
वह बोला, 'अरे भाई, मेरे साथ हमदर्दी कर और मेरे लिए दुआ कर। जब तूने मुझे पहले देखा था, तब मुझे केवल एक रोटी की चिन्ता थी। अब दुनिया भर की है। दरअसल, इस दुनिया से बढ़कर कोई मुसीबत नहीं है। यह न मिले, तो दुख देती है और मिले, तो भी दुख देती है। यदि तू धनवान होना चाहता है, तो सन्तोष कर।' यदि अमीर दामन भर कर सोना लुटा दे, तो इसे कोई बहुत बड़ा काम मत समझ। मैंने सुना है कि फकीर का सब्र अमीर की खैरात से कहीं बढ़कर है। यदि बहराम (इराक का एक विलासी बादशाह) एक गोरखर (जंगली गधा) भी भून कर ले आए, तो उसकी कीमत टिड्डी के उस पैर के बराबर भी नहीं होगी, जिसे एक चींटी घसीटकर ले आती है।     शेख सादी

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