सुबह एक परिन्दा चहचहा रहा था। उसने मेरी अक्ल, मेरा सब्र व मेरे होशो-हवास सब खो दिए। जब मेरे एक दोस्त को मालूम हुआ तो वह बोला, 'मुझे यकीन नहीं होता कि परिन्दे की आवाज से इंसान कैसे बेखुद हो सकता है?' मैंने कहा, 'इंसान के लिए यह मुनासिब नहीं है कि परिन्दे तो तस्बीह पढ़ रहे हों और वह चुपचाप बैठा रहे।'
एक बार हजाज के सफर में मेरे साथ कुछ फकीर भी जा रहे थे। रास्ता काटने के लिए वे सभी गाना गाते और शेर पढ़ते जा रहे थे। इसी काफिले में एक फकीर था, जो सबसे अलग-अलग रहता था। वह अपने ऊंट पर बैठा अकेला चला जा रहा था। जब हम नखेल-बनी-हलाल पर पहुंचे तो अरब के किसी कबीले से एक हब्शी लड़का निकला। उसने अल्लाह को पुकारते हुए ऐसा गाना गाया कि पक्षी आकाश से उतर आए। मैंने देखा, उस फकीर का ऊंट मस्त होकर नाचने लगा और उसे जमीन पर पटककर जंगल की ओर भाग गया। मैंने उस फकीर से कहा, 'शेख साहब! उस हब्शी ने अल्लाह की प्रशंसा में जो गाना गाया उससे जानवर तक प्रभावित हो गए; किंतु आप वैसे के वैसे ही रहे।'
जानते हो मुझसे सुबह के वक्त चहचहाने वाली बुलबुल ने क्या कहा? उसने मुझसे कहा, 'तू कैसा आदमी है, जो इश्क से बेखबर है? अरबी शेर से ऊंट भी मस्ती में आ जाते हैं और खुदा की याद में खो जाते हैं। जंगल में जब हवा चलती है, तो बान की शाखें झूमने लगती है; किंतु पत्थर ज्यों का त्यों रहता है। संसार की हर चीज उसे पैदा करने वाले का नाम ले-लेकर शोर मचा रही है; लेकिन इसे सुनता वही है, जिसके कान सुन सकते हों।'
शेख सादी
एक बार हजाज के सफर में मेरे साथ कुछ फकीर भी जा रहे थे। रास्ता काटने के लिए वे सभी गाना गाते और शेर पढ़ते जा रहे थे। इसी काफिले में एक फकीर था, जो सबसे अलग-अलग रहता था। वह अपने ऊंट पर बैठा अकेला चला जा रहा था। जब हम नखेल-बनी-हलाल पर पहुंचे तो अरब के किसी कबीले से एक हब्शी लड़का निकला। उसने अल्लाह को पुकारते हुए ऐसा गाना गाया कि पक्षी आकाश से उतर आए। मैंने देखा, उस फकीर का ऊंट मस्त होकर नाचने लगा और उसे जमीन पर पटककर जंगल की ओर भाग गया। मैंने उस फकीर से कहा, 'शेख साहब! उस हब्शी ने अल्लाह की प्रशंसा में जो गाना गाया उससे जानवर तक प्रभावित हो गए; किंतु आप वैसे के वैसे ही रहे।'
जानते हो मुझसे सुबह के वक्त चहचहाने वाली बुलबुल ने क्या कहा? उसने मुझसे कहा, 'तू कैसा आदमी है, जो इश्क से बेखबर है? अरबी शेर से ऊंट भी मस्ती में आ जाते हैं और खुदा की याद में खो जाते हैं। जंगल में जब हवा चलती है, तो बान की शाखें झूमने लगती है; किंतु पत्थर ज्यों का त्यों रहता है। संसार की हर चीज उसे पैदा करने वाले का नाम ले-लेकर शोर मचा रही है; लेकिन इसे सुनता वही है, जिसके कान सुन सकते हों।'
शेख सादी