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बुरे साथी

1:48 am, Posted by दास्तानें, No Comment

  मैं अपने दमिश्क के दोस्तों के साथ रहते-रहते इतना ऊब गया कि कुद्स के जंगल की ओर निकल गया। वहां रहकर मैं जानवरों से प्रेम करने लगा। दुर्भाग्य से मुझे फिरंगियों ने कैद कर लिया और यहूदियों के साथ मुझे भी तराबलस में एक खाई की मिट्टी निकालने के काम पर लगा दिया। उधर से हलब का एक रईस गुजरा। वह मुझे पहचान गया और बोला, 'क्या हाल है? यह तकलीफ क्यों उठा रहा है?' मैंने कहा, 'क्या बताऊं? मैं जंगल की तरफ इसलिए भागा कि मेरा दिल खुदा से लगा रहे, लेकिन यहां मुझे अस्तबल में जानवरों के साथ बांध दिया गया।' उसे मेरी हालत पर रहम आ गया और दस दीनार देकर मुझे फिरंगियों की कैद से छुड़ा लिया। इसके बाद वह मुझे अपने घर ले आया। उसकी एक बेटी थी, जिसकी सौ दीनार महर पर मेरे साथ शादी कर दी। कुछ समय बाद मेरी बीवी मेरे साथ दुर्व्यवहार करने लगी। उसने मेरी जिंदगी दूभर कर दी। यदि किसी भले आदमी के घर में बदजबान औरत हो, तो उसके लिए दोजख यहीं है। बुरे साथी से खुदा बचाए।
एक दिन मेरी बीवी ताना देने लगी, 'क्या तू वही आदमी नहीं, जिसे मेरे वालिद ने दस दीनार देकर कैद से छुड़ाया था?' मैंने कहा, 'हां, मैं वही हूं जिसे तेरे वालिद ने दस दीनार के बदले फिरंगियों से छुड़ाया और फिर सौ दीनार में तेरे हाथों गिरफ्तार करा दिया।' मैंने सुना कि एक बुजुर्ग ने बकरी को भेडि़ए के पंजे से छुड़ाया और रात को उसके गले पर छुरी फेर दी। बकरी कहने लगी - ऐ जालिम, भेडि़ए के पंजे से तूने मुझे छुड़ा लिया, लेकिन मेरी समझ में तू खुद भेडिय़ा था।
    -शेख सादी

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