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दौलत

11:32 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक फकीर जंगल के एक कोने में अकेला बैठा था। उधर से एक बादशाह गुजरा। फकीर ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। बादशाह का रोब फकीर पर न चला। यह देखकर बादशाह को क्रोध आ गया। वह कहने लगा, 'ये गुदड़ी पहनने वाले जानवर हैं। न इनमें लियाकत है और न इंसानियत!' बादशाह के साथ उसका वजीर भी था। वह फकीर के पास आकर बोला, 'खुदा के बन्दे! दुनिया का मालिक बादशाह तेरे पास से गुजरा, पर तूने उसका अदब नहीं किया और न कोई खिदमत की!'
फकीर बोला, 'बादशाह से कह देना कि वह अदब और खिदमत की उम्मीद उससे रखे, जिसे उससे कुछ इनाम पाने की गरज हो। दूसरी बात यह कि बादशाह रिआया की हिफाजत के लिए होता है। रिआया उसकी खिदमत के लिए नहीं होती।' बादशाह फकीर का चौकीदार है। भेड़ चरवाहे के लिए नहीं होती। चरवाहा उसकी देखभाल के लिए होता है। यदि एक को अपनी इच्छा के अनुसार सब-कुछ मिला हुआ है और दूसरे का दिल रंज और तकलीफ से जख्मी हो रहा है, तो थोड़े दिन ठहर जा। तू देखेगा कि जालिम के सिर को मिट्टी खा गई। यदि कोई कब्रों को खोदकर देखे तो अमीर और फकीर में अन्तर करना सम्भव नहीं होगा। बादशाह को फकीर की बात अच्छी लगी। उसने फकीर से कहा, 'मुझसे कुछ मांग?' फकीर बोला, 'मैं तुमसे यही चाहता हूं कि तुम दुबारा मुझे परेशान न करो।' बादशाह ने कहा, 'अच्छा मुझे कुछ नसीहत कर।' फकीर बोला, 'कुछ कर ले, क्योंकि अभी तो दौलत तेरे पास है। दौलत और मुल्क हाथोहाथ चलते रहते हैं, सदैव किसी एक के पास नहीं रहते।    
                                                    शेख सादी

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