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उस्ताद का जुल्म

10:55 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

पश्चिम के मुल्क में मैंने एक मदरसे में ऐसे उस्ताद को देखा जो बेहद चिड़चिड़ा, बच्चों को सताने वाला और कमअक्ल था। मुसलमान उसे देखकर बहुत दुखी होते। उसके सामने न किसी की हंसने की हिम्मत होती थी और न बात करने की। कभी वह किसी के गाल पर तमाचा मार देता और कभी किसी की पिंडली को शिकंजे में कस देता। जब लोगों को उसकी ज्यादतियों का पता चला तो उन्होंने उसे मार-मारकर वहां से निकाल दिया।
उस मदरसे में एक नेक आदमी पढ़ाने के लिए रख दिया गया। यह आदमी परहेजगार था। कभी किसी से ऐसी बात नहीं कहता था, जिससे उसे तकलीफ पहुंचती। बच्चों के दिल में पहले उस्ताद का जो डर था, वह निकल गया। नए उस्ताद को उन्होंने फरिश्ते की तरह नेक पाया। नतीजा यह हुआ कि हर लड़का शैतान बन गया। उस्ताद की शराफत का फायदा उठाकर उन्होंने पिछला पढ़ा-लिखा भी सब भुला दिया।
पढ़ाने वाला उस्ताद जब बच्चों पर सख्ती करना बन्द कर देता है, तो बच्चे बाजार में जाकर मदारी बन जाते हैं।
दो हफ्ते बाद मैं उस मदरसे की तरफ से गुजरा। मैंने देखा कि अब वे लोग पहले वाले उस्ताद को मनाकर वापस ले आए थे। मैंने लाहौल पढ़ा और लोगों से पूछा कि उस शैतान को फिर से फरिश्तों का उस्ताद क्यों बना दिया गया?
एक मसखरे और तजुर्बेकार बूढ़े ने मुझे जवाब दिया, 'एक बादशाह ने अपने बेटे को मकतब में बैठाया और उसकी बगल में चांदी की तख्ती दे दी, उसके हाथों सोने के पानी से उस तख्ती पर लिखवाया गया- 'उस्ताद का जुल्म बाप की मुहब्बत से बेहतर है।'    -शेख सादी

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