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फकीर कौन

11:46 pm, Posted by दास्तानें, No Comment

एक बादशाह मन-ही-मन फकीरों से नफरत करता था। एक समझदार फकीर इस बात को ताड़ गया। उसने कहा, 'ऐ बादशाह! हम लोग तुझसे, अधिक सुखी हैं। तेरे पास बहुत बड़ी सेना जरूर है, लेकिन मरेंगे हम और तू दोनों ही। अल्लाह ने चाहा, तो कयामत के दिन हमारी दशा तुझसे अच्छी होगी। 'दुनिया को जीतने वाला अपने इरादों में कामयाब हो सकता है, और फकीर रोटी को भी मोहताज रह सकता है, लेकिन जब मौत आएगी, तो कब्र में कफन के सिवा किसी के साथ कुछ भी न जाएगा।' जब एक दिन तेरी बादशाहत खत्म ही होगी, तो अच्छा है कि तू अभी फकीरी ले ले। देखने में फकीरी महज एक गूदड़ी और मुंडा हुआ सिर है, किन्तु उसका फल अपने मन को जीतना और शान्ति पाना है। वह फकीर नहीं है, जो फकीर होने का दावा तो करे, किन्तु लोग उसकी न सुनें, तो उनसे लड़ने के लिए खड़ा हो जाए। फकीरों में खुदा को याद करना, उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा करना, उसकी खिदमत करना, इन सब गुणों का होना जरूरी है, जिसमें ये सब गुण हों, वही सच्चा फकीर है। भले ही वह शाही पोशाक पहनता हो।
दूसरी ओर, जो दिन-भर मारा-मारा फिरे, नमाज न पढ़े, इच्छाओं का गुलाम हो, लालची हो, दिन-भर कामवासनाओं से घिरा रहे, जो भी हाथ लगे उड़ा ले और जो भी मुंह में आए बक डाले वह ऐयाश है। फकीर नहीं, चाहे वह गूदड़ी ही क्यों न पहनता हो। तेरा दिल तो साफ है नहीं और तूने कपड़े फकीरों के पहन रखे हैं। इस ढोंग से तुझे क्या मिलेगा? दरवाजे पर तू सतरंगे पर्दे मत लटका, यदि तेरे घर के अन्दर बिछाने के लिए टाट के सिवा कुछ भी नहीं है।     - शेख सादी

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